20) वो केरम बोर्ड ( यादों के झरोके से )
शीर्षक = वो केरम बोर्ड
अपनी यादों के सफऱ में आगे बढ़ते हुए क्रम में एक और यादगार लम्हा मेरे सामने आन पंहुचा जो की मुझे लगता है , कि उसे आपके साथ साँझा करना चाहिए , क्यूंकि ख़ुशी हो या गम दूसरों के साथ बाटने से बढ़ और कम हो जाते है
तो ऐसे ही अपने ख़ुशी के लम्हें को जो कि अब गुज़रते सालों में याद बन कर रह गया है उसे आपके समक्ष रखने का छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ
बात है उन दिनों कि जब मैं पाँचवी कक्षा में पढता था और कुछ दिन बाद गर्मियों कि छुट्टी होने को थी, सब बच्चें बहुत उत्साहित थे गर्मियों कि छुट्टी को लेकर, कोई नानी के घर जाने का प्लान बना रहा था तो कोई अपने गांव तो कोई रेल यात्रा कर किसी दुसरे शहर जाने कि बात कर रहा था
हम भी कही ना कही जाने की बात कर रहे थे , जिसमे मामा का घर नंबर एक पर था नानी तो नहीं थी हमारी पर मामा है जो अक्सर हमें बुलाया करते थे और हम जाते भी थे , लेकिन एक दो दिन से ज्यादा कोई कितना रुक सकता है, वापस घर भी तो आना होता है
उन दिनों महीना भी बड़ा लम्बा होता था, और दिन भी आज की तरह पलक झपकते शाम नहीं हो जाती थी
उस समय कैरम बोर्ड का प्रचलन नया नया था, जो की बहुत से बच्चों के पास देखने को मिल जाता था, एक लकड़ी का चकोर सा पटला जिसके चारों कोनो पर बड़े से छेद होते थे जिनके नीचे जाली लगी होती थी
उसके साथ 12 सफ़ेद लकड़ी की गिट्टीया और 12 लकड़ी की गिट्टीया और एक लाल गिट्टी जिसे रानी कहते थे और एक बड़ा सा प्लास्टिक या लकड़ी का गिट्टा होता था , बीचे में उन सब छोटी काली सफ़ेद गिट्टी को लाल गिट्टी के साथ लकड़ी के उस चकोर पटले पर सजाया जाता और फिर चार, दो या फिर एक खिलाडी द्वारा उस बडी गुट्टी को बीच में रखी काली, सफ़ेद और लाल गिट्टी पर मारा जाता और लक्ष्य यही रहता की जो पहले उस लाल गिट्टी को और उसके साथ अन्य अपनी चयनित गिट्टी को उस पटले पर बने छेदो में डाला जाता था
और जो भी टीम ऐसा करने में सक्षम हो पाती वो विजय होती और ख़ुशी मनाते
मुझे वो केर्रोम बोर्ड बहुत पसंद था लेकिन उसका मूल्य बहुत अधिक था क्यूंकि वो नया नया हमारे शहर में प्रचलित हुआ था
उसका मूल्य अधिक होने की वजह से मैं उसे लेने में सक्षम नही था, इसलिए अपने दोस्त के साथ ही खेलता था उसके पास उसका खुद का केर्रोम बोर्ड था
मेरे बड़े भाई जिनसे मैंने उसे लाकर देने को कहा था और वो चाहते थे की वो मुझे लाकर दे इसलिए उन्होंने ना जाने कहा से पैसों को जोड़ ताड़ करके मुझे मेरा वो अपना केर्रोम बोर्ड लाकर दिया
जिसे मैं खेलने के बाद बहुत हिफाज़त से रख देता, अपने दोस्तों को भी खिलता कभी कभी हम सब परिवार वाले भी खेलते समय निकाल कर बहुत मज़ा आता था , किसी की हार पर हस्ते तो किसी की जीत पर जश्न मनाते
मैंने उसे बहुत हिफाज़त से अपने पास रखा लेकिन लकड़ी का होने की वजह से और हमारे घर में सीलन की वजह से उस पर दीमक लग गयी और उसे ख़राब कर दिया जिसके बाद उसे फ़ेंकने के अलावा कोई दूसरा हल नही था ,और फिर दिल पर पत्थर रख कर उसे फ़ेंक दिया गया
ऐसे ही किसी अन्य याद को आपके साथ साँझा करने के लिए दोबारा हाजिर हूँगा तब तक के लिए अलविदा
यादों के झरोखे से
Sachin dev
14-Dec-2022 04:01 PM
Superb
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